Sunday, 21 October 2018

आढा चाखा का परीचय

आढा चाखा का परीचय

  •   veer Gadhavi       आढा चाखा का परीसय                                           
    आढ़ा चारणों की बीस मूल शाखाओं ( बीसोतर ) में " वाचा " शाखा में सांदु , महिया तथा " आढ़ा " सहित सत्रह प्रशाखाएं हैं । इसके अन्तर्गत ही आढ़ा गौत्र मानी जाती है । आढ़ा नामक गांव के नाम पर उक्त शाखा का नाम पड़ा जो कालान्तर में आढ़ा गौत्र में । परिवर्तित हो गया । चारण समाज में महान ख्यातनाम कवियों में दुरसाजी आढा का नाम मुख्य रूप से लिया जाता है । इनका जन्म 1535 ईस्वी में आढ़ा ( असाड़ा ) ग्राम जसोल मलानी ( बाड़मेर ) में हुआ । इनके पिता मेहाजी आढ़ा तथा दादा अमराजी आढ़ा थे । ये अपनी वीरता , योग्यता एवं कवित्व शक्ति के रूप में राजस्थान में विख्यात हुए । इन्हें पेशुआ , झांखर , उफंड और साल नामक गांव एवं 1 करोड़ पसाव ( 1607 ई . ) राज सुरताणसिंह सिरोही द्वारा प्रदान किये गये । राजस्थान में राष्ट्र जननी का अभिनव संदेश घर - घर पहुंचाने के लिए ये पूरे राजपूताना में घूमें । वीर भूमि मेवाड़ में पधारने पर महाराणा अमरसिंह ने इनका बड़ी पोल तक भव्य स्वागत किया था । इन्हीं के वंशजों में जवान जी आढा को ही मेवाड़ में जागीर गांव मिले । इतिहास विशेषज्ञ डॉ . मेनारिया के अनुसार दुरसाजी ने अपनी काव्य प्रतिभा से जितना यष , प्रतिष्ठा और धन अर्जित किया उतना किसी अन्य कवि ने नहीं प्राप्त किया । अचलगढ़ ( माउन्ट आबू ) देवालय में इनकी पीतल की मूर्ति स्थापित है जिस पर ( 1628 ई . ) का एक लेख उत्तीर्ण है । संभवतः किसी कवि की पीतल की मूर्ति का निर्माण पूर्व में कहीं देखने को नहीं मिलता है । इनकी प्रमुख काव्य रचनाओं में विरूद्ध छहतरी , किरतार । बावनी एवं श्रीकुमार अज्जाजी नी भूचर मौरी नी गजजत मुख्य

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